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जीवनचरित

” कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन ।

मेरा जन्म 15 जून 1938 को अहमदनगर शहर के पास भिंगार ग्राम में हुआ। वैसे हमारा परिवार राळेगण सिद्धि तहसील पारनेर ज़िला अहमदनगर से था लेकिन मेरे दादाजी भिंगार छावनी में फ़ौज में जमादार थे इस लिए हमारा परिवार उस समय भिंगार ही में रहा करता था। मेरा जन्म भी वहीं पर हुआ।  भिंगार की कैखुसरी इरानी ब्रदर्स स्कूल में कक्षा चौथी तक मेरी पढाई हुई। आगे की पढाई के लिए मेरे मामाजी मुझे मुम्बई ले गए। बचपन में मेरी माताजी ने मुझे अच्छे संस्कार दिए। मेरी माँ भले ही पढ़ी लिखी नहीं थी मगर ज़िन्दगी को किस तरह जीना चाहिए यह वो भली भाँति जानती थी।  झूठ नहीं बोलना, चोरी नहीं करना, मक्कारी बुरी बात है, सबका भला करें, किसीका भला न भी कर पाओ तो कम से कम बुरा तो न करें, बचपन के संस्कार आदमी के पूरे जीवन को प्रभावित करते हैं।

मेरी माता ने राष्ट्र प्रेम के संस्कार मुझपर किये ही थे। सन 1963 में मैं फौज में भर्ती हुआ। मैं कईयों से सवाल पूछता रहा कि क्यों जीता है इन्सान? कोई माकूल जवाब नहीं दे पाया। फिर बडे सोच-विचार के बाद मैंने तय किया कि इस अर्थहीन जीवन का अन्त ही कर दें। क़िस्मत की लीला देखिए। दिल्ली रेल्वे स्टेशन के बुक स्टॉल पर एक किताब पर स्वामी विवेकानन्द जी का चित्र बडा अच्छा लगा इस लिए वह किताब मैंने खरीद ली। पढने लगा और यूं लगा कि जीवन की डोर ही हाथ लग गई। स्वामी जी की और भी किताबें पढ़ता गया। स्वामी विवेकानन्द जी के सभी विचारों को समझ पाना आसान नहीं है और मुझ जैसे कम पढे इन्सान के लिए तो मानो असम्भव ही है। पर स्वामी जी के विचारों से एक बात मैं यह समझ पाया कि हर आदमी जो जन्म होने से मरने तक “मैं-मेरा….” करते हुए दौड रहा है, उसकी वजह यह है कि उसे आनन्द की तलाश है। स्वामी विवेकानन्द जी कहते हैं, अखण्ड आनन्द बाहर से नहीं मिलने वाला है, वह भीतर से, अपने अन्तर में से मिलेगा। दीन-दुखी-पीडित इन्सानों की सेवा करना ही ईश्वर की पूजा-आराधना है। ऐसी पूजा करने से आदमी को अखण्ड आनन्द मिल सकता है। लेकिन वह सेवा निष्काम भाव से होनी चाहिए। स्वामी विवेकानन्द जी के विचार और महात्मा गांधी जी की सोच ‘गांवों कि और जाओ’  इन बातों का मेरे जीवन पर जो प्रभाव हुआ उसके फलस्वरूप मैंने 25 साल की भरी जवानी सन 1965 के युद्ध में खेमकरण में हुआ हवाई हमला में निश्चय कर लिया कि मेरा सम्पूर्ण जीबन अब मैं गाँव की, समाज की, देश की सेवा निष्काम भाव से करने में लगाऊंगा। सेवा यानि कि बिना फल की अपेक्षा रखते हुए निष्काम भाव से किया हुआ कर्म। मैंने मेरे जीवन के लिए मेरा गन्तव्य सुनिश्चित कर लिया- “कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन । Read More

पुरस्कार

१९८६
इंदिरा प्रियदर्शिनी वृक्षमित्र पुरस्कार

१९८७
कृषी भूषण पुरस्कार
( महाराष्ट्र )

१९९०
पद्मश्री पुरस्कार

१९९२
पद्म भूषण पुरस्कार

२०१३
एलार्ड पुरस्कार (कॅनडा)

२०१४
दीनानाथ मंगेशकर जीवन वैभव पुरस्कार

आंदोलन

१९८०

रालेगण सिद्धि गांव में स्कूल की मान्यता के लिए आंदोलन

१९८३

प्रशासनिक असहयोग के विरुद्ध आंदोलन

१९८९

कृषि के लिए ड्रिप सिंचाई सब्सिडी के लिए आंदोलन

१९८९

किसानों को बिजली सुविधा के लिए आंदोलन

१९९४

महाराष्ट्र वन विभाग में भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन

गैलरी
रालेगणसिद्धि गांव
युवा शक्ति ही राष्ट्र की शक्ति है
पुस्तकें

रालेगण सिद्धि एक अल्प परिचय

अनुभव के बोल

जो शिक्षा सामाजिक रूप से जिम्मेदार व्यक्ति नहीं बनाती वह बेकार है

– स्वामी विवेकानंद
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